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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : एक नाम अधरों पर आया<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शहरयार]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कन्हैयालाल नंदन]]</td>
 
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ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
+
एक नाम अधरों पर आया
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
+
अंग-अंग चन्दन
 +
वन हो गया।
  
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
+
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
+
साँसों में सूरज उग आए
 +
आँखों में ऋतुपति के छन्द
 +
तैरने लगे
 +
मन सारा
 +
नील गगन हो गया।
  
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
+
गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
+
जैसे मधुमास का सवेरा
 +
फूलों की भाषा में
 +
देह बोलने लगी
 +
पूजा का
 +
एक जतन हो गया।
  
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
+
 
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
+
पानी पर खींचकर लकींरें
 +
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
 +
आसपास
 +
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
 +
अग्निबिन्दु
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और सघन हो गया!
 
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21:16, 30 सितम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : एक नाम अधरों पर आया
  रचनाकार: कन्हैयालाल नंदन
एक नाम अधरों पर आया
अंग-अंग चन्दन 
वन हो गया।

बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
साँसों में सूरज उग आए
आँखों में ऋतुपति के छन्द
तैरने लगे
मन सारा 
नील गगन हो गया।

गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में
देह बोलने लगी
पूजा का 
एक जतन हो गया।


पानी पर खींचकर लकींरें
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
आसपास
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
अग्निबिन्दु 
और सघन हो गया!