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"मादरे-हिन्द से / नज़ीर बनारसी" के अवतरणों में अंतर

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21:59, 30 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

क्‍यों न हो नाज़ ख़ाकसारी पर
              तेरे क़दमों की धूल हैं हम लोग
आज आए हैं तेरे चरणों में
              तू जो छू दे तो फूल हैं हम लोग
देश भगती भी हम पे नाज़ करे
              हम को आज ऐसी देश भगती दे
तेरी जानिब है दुश्‍मनों की नज़र
              अपने बेटों को अपनी शक्‍ती दे
     माँ हमें रण में सुर्ख़रू रखना
     अपने बेटों की आबरू रखना

तूने हम सब की लाज रख ली है
              देशमाता तुझे हज़ारों सलाम
चाहिये हमको तेरा आशीर्वाद
              शस्‍त्र उठाते हैं ले‍के तेरा नाम
लड़खड़ाएँ अगर हमारे क़दम
              रण में आकर संभालना माता
बिजलियाँ दुश्‍मनों के दिल पे गिरें
              इस तरह से उछालना माता
         माँ हमें रण में सुर्ख़रू रखना
         अपने बेटों की आबरू रखना

हो गई बन्‍द आज जिनकी जुबां
              कल का इतिहास उन्‍हें पुकारेगा
जो बहादुर लहू में डूब गए
              वक़्त उन्‍हें और भी उभारेगा
साँस टूटे तो ग़म नहीं माता
              जंग में दिल न टूटने पाए
हाथ कट जाएँ जब भी हाथों से
              तेरा दामन न छूटने पाए
माँ हमें रण में सुर्ख़रू रखना
     अपने बेटों की आबरू रखना