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"बाँसुरी चली आओ / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर

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तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
 
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
  
रात की उदासी को आँसुओ ने झेला है
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रात की उदासी को याद संग खेला है  
  
 
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
 
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है

17:37, 26 मई 2008 का अवतरण

तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा

साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा

तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है

तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है

रात की उदासी को याद संग खेला है

कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है

औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से

भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से

दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है

आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है

कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

कोई दीवाना कहता है (२००७) में प्रकाशित