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02:14, 3 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

गुण गाता हूँ मैं स्वच्छ मेज़पोश के
उजली बर्फ़ पर से
उठा लाई है माँ उसे
और बिछाने लगी है मेज़ पर
रविवार की इस दोपहर में ।

ठीक करती है माँ सिलवटें
झालरों को झूलते देखती है माँ
और चिपक जाते हैं नरम धागे
माँ की काली खुरदरी उँगलियों पर ।

आख़िर मिल गया है
रोटी के टुकड़े को
धरती के देवताओं का पूरा सम्मान ।

स्वच्छ और उज्जवल मेज़पोश पर रोटी
मज़बूत नसों पर जैसे पारदर्शी बर्फ़
जैसे रुपहली प्रसन्न पत्तियाँ मेपल की ।


रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह