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17:13, 4 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
सृजन की कोशिश
यह विचारों की द्रुतगामी नदी है
भावों की लहरें उफ़न रही है
और मैं कविता की नाव का
लंगर किनारे डालकर
शब्दों के पतवार से
आन्दोलनकारी विचारों
और झंझावाती भावों से
लड़ रहा हूं
यह सब कोशिश
एक सार्थक सृजन की
तलाश के लिए है ,
आखिर, यह थकता पतवार
नदी की लहरों से
कब सामंजस्य बैठा पाएगा?