भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अजनबी मनुष्य / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | क्यों मेरे लिये | ||
+ | वे लोग ही अजनबी बन गए | ||
+ | मैं जिनकी साँसों में जीता था | ||
+ | जो मेरी | ||
+ | साँसों में बसते थे | ||
+ | यह हादसा कैसे हुआ | ||
+ | कि मैं उनसे आँखें चुराने लगा | ||
+ | मैं उनकी मुसीबतें भुलाने लगा | ||
+ | जिन्हें कितनी बार | ||
+ | मैंने उनके साथ | ||
+ | अपने जिस्म पर झेला | ||
+ | वह तल्ख़ दर्द | ||
+ | कितने हमारे आँसू साँझे | ||
+ | हमने एक दूसरे के पोरों से पोंछे | ||
+ | एक दूसरे की राहों के काँटे | ||
+ | कितनी बार हमने | ||
+ | अपनी पलकों से समेटे | ||
+ | |||
+ | पता नहीं | ||
+ | वक़्त अचानक | ||
+ | क्या हादसा कर गया | ||
+ | कि मेरे भीतर | ||
+ | जो इन सब का अपना था | ||
+ | वह कैसे अचानक | ||
+ | धीरे-धीरे मर गया | ||
+ | |||
+ | उसके स्थान पर | ||
+ | मेरे भीतर | ||
+ | यह अजनबी-सा मनुष्य | ||
+ | कौन | ||
+ | प्रवेश कर गया | ||
+ | |||
+ | कि मेरे लिए | ||
+ | वे लोग ही अजनबी बन गए | ||
+ | मैं जिनकी साँसों में बसता था | ||
+ | जो मेरी साँसों में जीते थे । | ||
'''मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा | '''मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा | ||
</poem> | </poem> |
13:30, 5 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
क्यों मेरे लिये
वे लोग ही अजनबी बन गए
मैं जिनकी साँसों में जीता था
जो मेरी
साँसों में बसते थे
यह हादसा कैसे हुआ
कि मैं उनसे आँखें चुराने लगा
मैं उनकी मुसीबतें भुलाने लगा
जिन्हें कितनी बार
मैंने उनके साथ
अपने जिस्म पर झेला
वह तल्ख़ दर्द
कितने हमारे आँसू साँझे
हमने एक दूसरे के पोरों से पोंछे
एक दूसरे की राहों के काँटे
कितनी बार हमने
अपनी पलकों से समेटे
पता नहीं
वक़्त अचानक
क्या हादसा कर गया
कि मेरे भीतर
जो इन सब का अपना था
वह कैसे अचानक
धीरे-धीरे मर गया
उसके स्थान पर
मेरे भीतर
यह अजनबी-सा मनुष्य
कौन
प्रवेश कर गया
कि मेरे लिए
वे लोग ही अजनबी बन गए
मैं जिनकी साँसों में बसता था
जो मेरी साँसों में जीते थे ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा