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"कवि-कविता / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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13:34, 5 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

बहुत बेचैन करती है
कविता
कुलबुलाती
आँतों को चीर कर बाहर आती
नींद में
शोर मचाती
सपनों को तार-तार करती
अँधेरे में बार-बार जगती
आधी रात
जगा देती है कविता

जब सारी दुनिया
बेसुध सोती
तब भी
जागता है कवि

कविता


ता.... ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा