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"ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के / उदयप्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर

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ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
 
  
 
वैसे भी ये बड़े लोग हैं अक्सर धूप चढ़े जगते हैं,  
 
वैसे भी ये बड़े लोग हैं अक्सर धूप चढ़े जगते हैं,  
 
 
व्यवहारों से कहीं अधिक तस्वीरों में अच्छे लगते हैं,  
 
व्यवहारों से कहीं अधिक तस्वीरों में अच्छे लगते हैं,  
 
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इनका है इतिहास गवाही जैसे सोए वैसे जागे,
इनका है इतिहास गवाही जैसे सोये वैसे जागे,
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इनके स्वार्थ सचिव चलते हैं नयी सुबह के रथ के आगे,
 
इनके स्वार्थ सचिव चलते हैं नयी सुबह के रथ के आगे,
 
 
माना कल तक तुम सोये थे लेकिन ये तो जाग रहे थे,
 
माना कल तक तुम सोये थे लेकिन ये तो जाग रहे थे,
 
 
फिर भी कहाँ चले जाते थे जाने सब उपहार चमन के,
 
फिर भी कहाँ चले जाते थे जाने सब उपहार चमन के,
  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
 
  
 
इनके हित औ अहित अलग हैं इन्हें चमन से क्या मतलब है,
 
इनके हित औ अहित अलग हैं इन्हें चमन से क्या मतलब है,
 
 
राम कृपा से इनके घर में जो कुछ होता है वह सब है,
 
राम कृपा से इनके घर में जो कुछ होता है वह सब है,
 
 
संघर्षों में नहीं जूझते साथ समय के बहते भर हैं,
 
संघर्षों में नहीं जूझते साथ समय के बहते भर हैं,
 
 
वैसे ये हैं नहीं चमन के सिर्फ चमन में रहते भर हैं,
 
वैसे ये हैं नहीं चमन के सिर्फ चमन में रहते भर हैं,
 
 
इनका धर्म स्वयं अपने आडम्बर से हल्का पड़ता हैं,
 
इनका धर्म स्वयं अपने आडम्बर से हल्का पड़ता हैं,
 
 
शुभचिंतक बनने को आतुर बैठे हैं ग़द्दार चमन के,
 
शुभचिंतक बनने को आतुर बैठे हैं ग़द्दार चमन के,
  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
 
  
 
सूरज को क्या पड़ी भला जो दस्तक देकर तुम्हें पुकारे,
 
सूरज को क्या पड़ी भला जो दस्तक देकर तुम्हें पुकारे,
 
 
गर्ज़ पड़े सौ बार तुम्हारी खोलो अपने बंद किवाड़े,
 
गर्ज़ पड़े सौ बार तुम्हारी खोलो अपने बंद किवाड़े,
 
 
नयी रोशनी गले लगाओ आदर सहित कहीं बैठाओ,
 
नयी रोशनी गले लगाओ आदर सहित कहीं बैठाओ,
 
 
ठिठुरी उदासीनता ओढ़े सोया वातावरण जगाओ,
 
ठिठुरी उदासीनता ओढ़े सोया वातावरण जगाओ,
 
 
हो चैतन्य ऊंघती आँखें फिर कुछ बातें करो काम की,  
 
हो चैतन्य ऊंघती आँखें फिर कुछ बातें करो काम की,  
 
 
कैसे कौन चुका सकता है कितने कब उपकार चमन के,
 
कैसे कौन चुका सकता है कितने कब उपकार चमन के,
  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
 
  
 
धरे हाथ पर हाथ न बैठो कोई नया विकल्प निकालो,
 
धरे हाथ पर हाथ न बैठो कोई नया विकल्प निकालो,
 
 
ज़ंग लगे हौंसले माँज लो बुझा हुआ पुरुषार्थ जगा लो,
 
ज़ंग लगे हौंसले माँज लो बुझा हुआ पुरुषार्थ जगा लो,
 
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उपवन के पत्ते पत्ते पर लिख दो युग की नयी ऋचाएँ,
उपवन के पत्ते पत्ते पर लिख दो युग की नयी ऋचाएं,
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वे ही माली कहलाएँगे जो हाथों में ज़ख्म दिखाएँ,
 
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वे ही माली कहलायेंगे जो हाथों में ज़ख्म दिखायें,
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जिनका ख़ुशबूदार पसीना रूमालों को हुआ समर्पित,
 
जिनका ख़ुशबूदार पसीना रूमालों को हुआ समर्पित,
 
 
उनको क्या अधिकार कि पाएं वे महंगे सत्कार चमन के,
 
उनको क्या अधिकार कि पाएं वे महंगे सत्कार चमन के,
  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,  
 
 
  
 
जिनको आदत है सोने की उपवन की अनुकूल हवा में,
 
जिनको आदत है सोने की उपवन की अनुकूल हवा में,
 
 
उनका अस्थि शेष भी उड़ जाता है बनकर धूल हवा में,
 
उनका अस्थि शेष भी उड़ जाता है बनकर धूल हवा में,
 
 
लेकिन जो संघर्षों का सुख सिरहाने रखकर सोते हैं,
 
लेकिन जो संघर्षों का सुख सिरहाने रखकर सोते हैं,
 
 
युग के अंगड़ाई लेने पर वे ही पैग़म्बर होते हैं,
 
युग के अंगड़ाई लेने पर वे ही पैग़म्बर होते हैं,
 
 
जो अपने को बीज बनाकर मिटटी में मिलना सीखे हैं,
 
जो अपने को बीज बनाकर मिटटी में मिलना सीखे हैं,
 
 
सदियों तक उनके साँचे में ढलते हैं व्यवहार चमन के,
 
सदियों तक उनके साँचे में ढलते हैं व्यवहार चमन के,
  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,  
 
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,
 
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,
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03:10, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,

वैसे भी ये बड़े लोग हैं अक्सर धूप चढ़े जगते हैं,
व्यवहारों से कहीं अधिक तस्वीरों में अच्छे लगते हैं,
इनका है इतिहास गवाही जैसे सोए वैसे जागे,
इनके स्वार्थ सचिव चलते हैं नयी सुबह के रथ के आगे,
माना कल तक तुम सोये थे लेकिन ये तो जाग रहे थे,
फिर भी कहाँ चले जाते थे जाने सब उपहार चमन के,

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,

इनके हित औ अहित अलग हैं इन्हें चमन से क्या मतलब है,
राम कृपा से इनके घर में जो कुछ होता है वह सब है,
संघर्षों में नहीं जूझते साथ समय के बहते भर हैं,
वैसे ये हैं नहीं चमन के सिर्फ चमन में रहते भर हैं,
इनका धर्म स्वयं अपने आडम्बर से हल्का पड़ता हैं,
शुभचिंतक बनने को आतुर बैठे हैं ग़द्दार चमन के,

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,

सूरज को क्या पड़ी भला जो दस्तक देकर तुम्हें पुकारे,
गर्ज़ पड़े सौ बार तुम्हारी खोलो अपने बंद किवाड़े,
नयी रोशनी गले लगाओ आदर सहित कहीं बैठाओ,
ठिठुरी उदासीनता ओढ़े सोया वातावरण जगाओ,
हो चैतन्य ऊंघती आँखें फिर कुछ बातें करो काम की,
कैसे कौन चुका सकता है कितने कब उपकार चमन के,

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,

धरे हाथ पर हाथ न बैठो कोई नया विकल्प निकालो,
ज़ंग लगे हौंसले माँज लो बुझा हुआ पुरुषार्थ जगा लो,
उपवन के पत्ते पत्ते पर लिख दो युग की नयी ऋचाएँ,
वे ही माली कहलाएँगे जो हाथों में ज़ख्म दिखाएँ,
जिनका ख़ुशबूदार पसीना रूमालों को हुआ समर्पित,
उनको क्या अधिकार कि पाएं वे महंगे सत्कार चमन के,

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,

जिनको आदत है सोने की उपवन की अनुकूल हवा में,
उनका अस्थि शेष भी उड़ जाता है बनकर धूल हवा में,
लेकिन जो संघर्षों का सुख सिरहाने रखकर सोते हैं,
युग के अंगड़ाई लेने पर वे ही पैग़म्बर होते हैं,
जो अपने को बीज बनाकर मिटटी में मिलना सीखे हैं,
सदियों तक उनके साँचे में ढलते हैं व्यवहार चमन के,

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के,