"हाथों में मचलता वर्तमान / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर
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12:38, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
मिले हम
तो बोली वह -
मैं जानती हूँ तुम्हें जन्म-जन्म से
तुम मेरे सपनों के राजकुमार
जो मेरी कितनी रातों में
भेस बदल कर आते रहे
मैं मुस्कराया
वह फिर बोली -
हम यूँ ही रहेंगे ना सदा
युगों तक
जन्म-जन्म
हम जन्में एक दूसरे के लिए
मैं फिर मुस्कराया
कुछ मेरी यादों में आया
आईं मेरी स्मृति में
लौट कर
वे सब नदियाँ
जो इसी तरह इठलाती थीं
पर वक़्त के मरूस्थल में
इस तरह भटक गईं
कि फिर नहीं लौटीं
वह फिर बोली -
तुम्हें नहीं लगता यूँ
मैंने उसका हाथ पकड़ा
हाथ पकड़ा और बोला -
कि छोड़ो
ये जन्म-जन्म की बातें
युगों तक रिश्ते निभाने के भावुक वादे
जीना सीखो
सीखो सिर्फ़ वर्तमान में जीना
इस पल यहाँ
सिर्फ़ तुम और मैं
अतीत भविष्य का कैसा रोना
क्या जाने कि अगले ही पल
न तुमने न मैंने होना
अगले पल पिछले क्षण
किसने देखे
किसने जानें
मैंने कहा
और हाथों में मचलते वर्तमान को
जी भर कर जीने लगा ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा