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"कवि / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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12:46, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

उसकी बाहों में
नदी-सी पूर्ण देह थी

होठों में नीर
देह में लचक
जीती-जागती
धड़कती
काँपती
लरज़ती
एक मुकम्मल कविता थी
उसके आग़ोश में

मैं हैरान था
वह कवि
फिर भी
कविताएँ लिख रहा था ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा