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"उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर

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लोग कहते हैं रुह बिकती है
 
लोग कहते हैं रुह बिकती है
  
मै जहाँ हूँ उधर नही मिलती
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मै जिधर  हूँ उधर नही मिलती

17:42, 26 मई 2008 के समय का अवतरण


उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती

हमको ही खासकर नही मिलती


शायरी को नज़र नही मिलती

मुझको तू ही अगर नही मिलती


रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया

ढूंढता हूँ मगर नही मिलती


लोग कहते हैं रुह बिकती है

मै जिधर हूँ उधर नही मिलती