"आ क़दम बढ़ा, चल साथ मेरे / भोला पंडित प्रणयी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | यह बड़ी बात तू ज़िन्दा है | |
− | + | लड़ना है तुझको वहशत से, | |
− | + | अपने को मफ़फलिस मत समझो | |
− | + | टकराना है इस दहशत से । | |
− | + | तू बाँध कफ़न अपने सर पर, न रहना है अब ख़ौफ़ज़दा । | |
− | + | ये ज़ुल्मो सितम सहकर कब तक | |
− | + | तू अपनी जिबह कराएगा, | |
− | + | आदमख़ोरों से कब तक तू | |
− | + | चुपचाप सज़ाएँ पाएगा ? | |
− | + | ख़तरे की घंटी बजती है, मक्तल से आती दर्दे-सदा ! | |
− | + | हादसे, कत्ल, बमबारी से | |
− | + | सब आतंकित हैं सोगवार, | |
− | + | दोशीजा की अस्मत लुटती | |
− | + | क्या लाफ़ानी है बलात्कार? | |
− | + | तू रोक इसे आगे बढ़कर, है तेरे कंधे बोझ लदा ! | |
− | + | लूटा है गुलशन को जिसने | |
− | + | पहचानो वैसी मूरत को, | |
− | + | ज़ालिम बनकर जिसने चूसा | |
− | + | छलनी कर उसकी फ़ितरत को। | |
− | + | तुम नहीं मुंतजिर बन बैठो, कर दो तुम उसको बेपरदा ! | |
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+ | देखो न दाग लगे दामन | ||
+ | यह वतन तुम्हारी अम्मा है, | ||
+ | ऐ वतनपरस्तो, परवानो, | ||
+ | हर शै पर जलती शम्मा है। | ||
+ | तेरी तकदीर बनाने को, हर साँस का ख़िदमतग़ार ख़ुदा ! | ||
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12:19, 19 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
आ क़दम बढ़ा, चल साथ मेरे, उठ जीने का कर फर्ज अदा !
यह बड़ी बात तू ज़िन्दा है
लड़ना है तुझको वहशत से,
अपने को मफ़फलिस मत समझो
टकराना है इस दहशत से ।
तू बाँध कफ़न अपने सर पर, न रहना है अब ख़ौफ़ज़दा ।
ये ज़ुल्मो सितम सहकर कब तक
तू अपनी जिबह कराएगा,
आदमख़ोरों से कब तक तू
चुपचाप सज़ाएँ पाएगा ?
ख़तरे की घंटी बजती है, मक्तल से आती दर्दे-सदा !
हादसे, कत्ल, बमबारी से
सब आतंकित हैं सोगवार,
दोशीजा की अस्मत लुटती
क्या लाफ़ानी है बलात्कार?
तू रोक इसे आगे बढ़कर, है तेरे कंधे बोझ लदा !
लूटा है गुलशन को जिसने
पहचानो वैसी मूरत को,
ज़ालिम बनकर जिसने चूसा
छलनी कर उसकी फ़ितरत को।
तुम नहीं मुंतजिर बन बैठो, कर दो तुम उसको बेपरदा !
देखो न दाग लगे दामन
यह वतन तुम्हारी अम्मा है,
ऐ वतनपरस्तो, परवानो,
हर शै पर जलती शम्मा है।
तेरी तकदीर बनाने को, हर साँस का ख़िदमतग़ार ख़ुदा !