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"शीर्षक की तरह / भोला पंडित प्रणयी" के अवतरणों में अंतर
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12:32, 19 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
तुम हमारे संघर्षशील जीवन का सच
आज नहीं तो कल
अवश्य जान जाओगे
हवा में तैरती ख़ुशबू की तरह।
तुम्हारी उड़ान शून्य में
भटकती पाखी की तरह
ज़मीन से बहुत ऊपर तो है
लेकिन, घोंसले में वापसी पर
तुम्हारी चोंच में
एक भी दाना नहीं होगा ।
मानवीय दृष्टि का यह अंधत्व ही
हमारी गुलामी का मूल है ।
एक सार्थक बहस के बाद ही
यह समझोगे कि कहाँ तुम्हारी भूल है ।
तुम अपने खंडित अस्तित्व पर
कब तक आत्मश्लाघा की
ऊँची मीनार खड़ी करते रहोगे ?
तुम्हारी केन्द्रीय शक्ति का पता सबको है
और इधर
असहमतियों के प्रभंजन को
तुम्हारे खोखलेपन का पता है ।
तुम्हें तो कविता की तरह
भीतर और बाहर
एक समान जीना चाहिए
एक शीर्षक की तरह ।