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21:10, 20 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
मेरे घर आया मेहमान
मानूँ मैं उनको भगवान
रोज रोटियाँ दाल बनाते
आज बने हैं पकवान।
घर की बैठक को सजाया
सबने अनुशासन अपनाया
करते भाग-भाग कर पूरे
उनके सारे फरमान।
कोई कसर रहे न शेष
अतिथि होते हैं विशेष
उनकी केवल इक मुस्काँ पर
हम हो जाते कुरबान ।।