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"कर्म ही पूजा / दीनदयाल शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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21:11, 20 अक्टूबर 2010 का अवतरण
कितना सारा काम करूँ मैं
फिर भी गधा कहाता
किससे कहूँ मैं पीड़ा अपनी
किसे नियम बतलाता।
लादो चाहे कितना बोझा
चुपचाप लदवाता
मैं भी करूँ आराम कभी तो
मन में मेरे आता।
शीतल अष्टमी के दिन केवल
अपनी सेवा पाता
बाकी दिन मैं मेहनत करता
नजर न कभी चुराता।
खाना जैसा देते मुझको
चुपचाप मैं खाता
शिकवे-शिकायत कभी न करता
नखरे न दिखलाता।
मैं जिसकी करता हूँ सेवा
समझूँ उसको दाता
कर्म करूँ गीता भी कहती
कर्म से मेरा नाता ।।