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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : एक नाम अधरों पर आया<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कन्हैयालाल नंदन]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[पुरुषोत्तम यक़ीन]]</td>
 
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एक नाम अधरों पर आया
+
जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
अंग-अंग चन्दन
+
हैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर
वन हो गया।
+
  
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
+
ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ा
साँसों में सूरज उग आए
+
करोड़ों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर
आँखों में ऋतुपति के छन्द
+
तैरने लगे
+
मन सारा
+
नील गगन हो गया।
+
  
गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
+
चमन में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगों
जैसे मधुमास का सवेरा
+
बुलों को खून के आँसू रुलावे धर्म का चक्कर
फूलों की भाषा में
+
देह बोलने लगी
+
पूजा का  
+
एक जतन हो गया।
+
  
 +
कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
 +
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर
  
पानी पर खींचकर लकींरें
+
सियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
+
जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्कर
आसपास
+
 
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
+
यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िर
अग्निबिन्दु
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किसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर
और सघन हो गया!
+
 
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मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारी
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निज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर
 +
 
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निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे से
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"यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्कर
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12:11, 21 अक्टूबर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
  रचनाकार: पुरुषोत्तम यक़ीन
जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
हैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर

ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ा
करोड़ों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर

चमन में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगों
बुलों को खून के आँसू रुलावे धर्म का चक्कर

कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर

सियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को
जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्कर

यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िर
किसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर

मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारी
निज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर

निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे से
"यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्कर
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