भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम यहीं रहेंगे / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:34, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

हम यहीं रहेंगे सदा
यह पृथ्वी हमारी है
यह मिट्टी हमारी है

हमने इस पृथ्वी को सींचा
इसे जोता
इसे आबाद किया है

यह पृथ्वी हमारी है
हमने इसकी मिट्टी को
ख़ून से सींचा है
यह खिले हुए फूल
लहलहाती फसलें
हमारे ख़ून और पसीने का बदल हैं

इस पृथ्वी की ख़ूबसूरती के लिए
हम ऋतुओं से झगड़े
हम तूफ़ानों से जूझे
हम सलीबों को कँधों पर उठा कर
मक्तल तक गए
हमने ज़हर के प्याले पिए
भर-भर कर
हम देग़ों में उबले
हथेलियों पर शीश रखकर
लड़ते रहे हैं हम

इसके तिनके-तिनके में हम हैं
इसके कण-कण में हमारा ख़ून है

हमने जीवित रहते
इस मिट्टी में फूल उगाए
हम मर कर भी
इस मिट्टी में
फूल बन कर खिलेंगे

क्योंकि
यह पृथ्वी हमारी है
यह मिट्टी हमारी है

हम यहीं रहेंगे सदा ।

मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा