"चार मुक्तक / गिरिराज शरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज शरण अग्रवाल }} {{KKCatKavita}} <poem> '''1. प्यार की दुन…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:20, 25 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
1.
प्यार की दुनिया जो थी, व्यापार की दुनिया है अब
ज्ञान की पूँजी भी कारोबार में शामिल हुई
यह ज़रूरी तो नहीं है, साफ़-सुथरी ही मिले
सूचना, उपभोक्ता बाज़ार में शामिल हुई
2.
जिसको पुरखों ने पढ़ाया जिसको नस्लों ने पढ़ा
वो सबक अनपायतों का याद रहने दीजिए !
सिर्फ़ कारोबार से दुनिया सँवर सकती नहीं
प्यार को व्यापार की बुनियाद रहने दीजिए
3.
वे भी है जिनको जला ही नहीं पाती ज्वाला
कितने ही फूल तो शबनम से भी जल जाते हैं
हम तो आँधी के थपेड़ों में न बदले अब तक
कैसे मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं
4
भेंट के नाम एहसान छुपा हो जिसमें
ऐसे रेशम को भी काँटों का बिछौना समझो
वो जो मेहनत से चमक उठता है माथे पे उसे
तुम पसीना नहीं, पिघला हुआ सोना समझो