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"छूँछे घड़े / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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आए
 
और चले गए
 
सुखशाई दिन
 
छूकर मुझे
 
देकर दुखदाई
 
अंधकार
 
भरमार
 
 
 
 
 
 
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19:20, 26 अक्टूबर 2010 का अवतरण

छूँछे घड़े
बाट के टूटे
ऊँचे नहीं--
पड़े हैं नीचे
कभी जिन्होंने
पौधे सींचे
अब
मन चीते
हाथ गहे के
वे दिन बीते
अंक लगे के
शीस चढ़े के
सपने रीते
रचनाकाल: ०६-०३-१९६५