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"दीपक जलता रहा रातभर / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

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नगर न जाना, डगर न जानी;
 
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कोई भी तो साथ नहीं था,
 
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सूनी डगर सितारे टिमटिम,
 
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पंथी चलता रहा रातभर।
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अगणित तारों के प्रकाश में,
 
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मैं अपने पथ पर चलता था,
 
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मैंने देखा, गगन-गली में,
 
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चाँद सितारों को छलता था।
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ऑंधी में, तूफानों में भी,
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प्राण-दीप मेरा जलता था,
 
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दिशा बदलता रहा रातभर।
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22:15, 29 अक्टूबर 2010 का अवतरण

तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रात-भर ।

दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।

बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।

दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,

कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर ।

अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।

आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर ।