भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक टुकड़ा गाँव / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>यह महानगर की एक पतली गली, गली में इमारतें ऊँची-नीची बहुमंजिली…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | यह महानगर की | ||
एक पतली गली, | एक पतली गली, | ||
गली में इमारतें | गली में इमारतें | ||
ऊँची-नीची | ऊँची-नीची | ||
− | + | बहुमंज़िली । | |
इन्हीं के बीच | इन्हीं के बीच | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 16: | ||
भींतों वाला | भींतों वाला | ||
एक पुराना घर, | एक पुराना घर, | ||
− | गारे-माटी से | + | गारे-माटी से निर्मित । |
− | + | ||
+ | ज़माने पुराने | ||
किंवाड़ काठ के | किंवाड़ काठ के | ||
बड़े-बड़े पल्लों वाले, | बड़े-बड़े पल्लों वाले, | ||
खुले हुए हैं | खुले हुए हैं | ||
− | और | + | और दरवाज़े पर |
एक बुढिय़ा | एक बुढिय़ा | ||
घाघरा-कुरती पहने, | घाघरा-कुरती पहने, | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 34: | ||
गली टिपतों को, | गली टिपतों को, | ||
आँखों पर अपने | आँखों पर अपने | ||
− | + | दाँए हाथ से छतर बनाए । | |
वह देखो, | वह देखो, | ||
बाखळ में | बाखळ में | ||
− | मैं-मैं करती | + | मैं-मैं करती बकरियाँ |
− | और आँगन में पळींडा | + | और आँगन में पळींडा भी । |
अहा, | अहा, | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 46: | ||
किस तरह | किस तरह | ||
मुस्करा रहा है | मुस्करा रहा है | ||
− | एक टुकड़ा | + | एक टुकड़ा गाँव । |
</poem> | </poem> |
01:30, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण
यह महानगर की
एक पतली गली,
गली में इमारतें
ऊँची-नीची
बहुमंज़िली ।
इन्हीं के बीच
लेव लटकती
भींतों वाला
एक पुराना घर,
गारे-माटी से निर्मित ।
ज़माने पुराने
किंवाड़ काठ के
बड़े-बड़े पल्लों वाले,
खुले हुए हैं
और दरवाज़े पर
एक बुढिय़ा
घाघरा-कुरती पहने,
तिस पर औढऩा बोदा-सा,
आँखों पर चश्मा
टूटी डंडी वाला
जिसकी कमी पूरी करता
एक काला डोरा,
लाठी के ठेगे खड़ी
निहार रही है
गली टिपतों को,
आँखों पर अपने
दाँए हाथ से छतर बनाए ।
वह देखो,
बाखळ में
मैं-मैं करती बकरियाँ
और आँगन में पळींडा भी ।
अहा,
देखो,
इस महानगर में
किस तरह
मुस्करा रहा है
एक टुकड़ा गाँव ।