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'''अनुवाद : मोहन आलोक''' | '''अनुवाद : मोहन आलोक''' | ||
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11:36, 1 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
वह आएगी
पर आएगी किसी की पीठ पर चढ़कर
क्यों कि वह है लंगड़ी
सब इन्तज़ार कर रहे हैं उसका ;
आकाश से नहीं
दिलों में उठ रहे हैं बवंडर
उथल-पुथल मची हुई है
लोग उठाने लगे हैं
राज्य, धर्म पर अँगुली ।
अनुवाद : मोहन आलोक