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"रात हो गई / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> रात हो गई, तू भी स…) |
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21:30, 3 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
रात हो गई, तू भी सो जा
मेरे साथ किताब मेरी!
बिछा दिया है बिस्तर तेरा
बस्ते के अंदर देखो,
लगा दिया कलर-बॉक्स का
तकिया भी सुंदर देखो,
मुँहफुल्ली, अब तो खुश हो जा
मेरे साथ किताब मेरी!
सुबह-सुबह फिर जल्दी-जल्दी
जगना है हम दोनों को,
भागम-भागी में स्कूल
निकलना है हम दोनों को,
फड़-फड़ न कर, अब चुप हो जा
मेरे साथ किताब मेरी!