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सूखे जंगल में लम्बा चाबुक मार रही है
झाड़ी में गाय मुँह जैसे डाल रही है
नीले-पीले-लाल-गुलाबी फूल खिले हैं
पैरों से दबकर सूखी पत्ती खँखार रही है
जल भरा बादल नभ में जैसे घूम रहा है
हरे खेत में ताज़ा पवन झूम रहा है
हृदय में छुपा-छुपा-सा कुछ है जो टीसे है
जीवन रेगिस्तान बना कुछ ढूँढ़ रहा है
(07 जनवरी 1916)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय