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तन की हवस / गोपालदास "नीरज"
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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है
बाग के बाग़ को बीमार बना देती है
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है </poem>
अनिल जनविजय
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