"दश्त-ए-तनहाई / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपनी ख़ुश्ब में सुलगती हुई मद्धम-मद्धम | ||
+ | दूर् उफ़क़<ref>आकाश</ref> पर चमकती हुई क़तरा क़तरा | ||
+ | गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम<ref>ओस</ref> | ||
− | + | उस क़दर प्यार से ऐ जान-ए जहाँ रक्खा है | |
− | + | दिल के रुख़सार<ref>गाल</ref> पे इस वक़्त तेरी याद् ने हाथ | |
− | + | यूँ गुमाँ<ref>शक</ref> होता है गर्चे है अभी सुबह-ए-फ़िराक़ | |
− | + | ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात | |
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12:07, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
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खिल रहे हैं तेरे पहलू के समन<ref>चमेली</ref> और गुलाब
उठ रही है कहीं क़ुर्बत<ref>समीप</ref> से तेरी साँस की आँच
अपनी ख़ुश्ब में सुलगती हुई मद्धम-मद्धम
दूर् उफ़क़<ref>आकाश</ref> पर चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम<ref>ओस</ref>
उस क़दर प्यार से ऐ जान-ए जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़सार<ref>गाल</ref> पे इस वक़्त तेरी याद् ने हाथ
यूँ गुमाँ<ref>शक</ref> होता है गर्चे है अभी सुबह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात