"नील / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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रक्त और स्मृति के बीच | रक्त और स्मृति के बीच | ||
मैं ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल | मैं ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल | ||
− | मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, | + | मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नील । |
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छुई जा सकती है बारूद की तरह मेरे देश की रात | छुई जा सकती है बारूद की तरह मेरे देश की रात | ||
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प्रचण्ड लहरों ने सीने में जकड़ा था वह शव | प्रचण्ड लहरों ने सीने में जकड़ा था वह शव | ||
बर्छी की नोक जैसी तीखी हवा में | बर्छी की नोक जैसी तीखी हवा में | ||
− | तुम्हें फिर से छू लूँगा, | + | तुम्हें फिर से छू लूँगा, नील । |
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नील , मैं छुए हूँ मस्तकविहीन स्वदेश का कबंध | नील , मैं छुए हूँ मस्तकविहीन स्वदेश का कबंध | ||
छुए हूँ धान, मृत्यु, जन्म,क्रोध,खेत | छुए हूँ धान, मृत्यु, जन्म,क्रोध,खेत | ||
− | नील,तेरे स्पर्श से हुआ हूँ मैं नीला | + | नील,तेरे स्पर्श से हुआ हूँ मैं नीला रक्तमुख । |
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सियार के दाँतों-नाख़ूनों ने चींथ दिया था उसे | सियार के दाँतों-नाख़ूनों ने चींथ दिया था उसे | ||
कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल | कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल | ||
रक्त और स्मृति के बीच ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल | रक्त और स्मृति के बीच ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल | ||
− | मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, | + | मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नील । |
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11:03, 17 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नील
गिद्ध की चोंच और नाख़ूनों ने जिसे दिया था नोंच
कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल
रक्त और स्मृति के बीच
मैं ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल
मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नील ।
छुई जा सकती है बारूद की तरह मेरे देश की रात
नील ने देखी थी वह आश्चर्य रात
छुई थी सड़े-गले लोगो की आँखें असंख्य
प्रचण्ड लहरों ने सीने में जकड़ा था वह शव
बर्छी की नोक जैसी तीखी हवा में
तुम्हें फिर से छू लूँगा, नील ।
नील , मैं छुए हूँ मस्तकविहीन स्वदेश का कबंध
छुए हूँ धान, मृत्यु, जन्म,क्रोध,खेत
नील,तेरे स्पर्श से हुआ हूँ मैं नीला रक्तमुख ।
सियार के दाँतों-नाख़ूनों ने चींथ दिया था उसे
कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल
रक्त और स्मृति के बीच ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेल
मैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी, नील ।