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{{KKRachna
|रचनाकार=नागार्जुन
|संग्रह=मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा / नागार्जुन
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कल या कि परसों
 
हुआ एकाएक भाग्योदय
 
पकड़ लिया मल्का-ए-तरन्नुम
 
नूरजहाँ को
 
रेडियो पाकिस्तान से प्रसारित प्रोग्राम में
 
सुनाई पड़ी उस सुकण्ठी की स्वर लहरी
 
‘कजरारी अँखियों में निदिया न आए
 
जिया घबराए
 
पिया नहिं आए
 
कजरारी अँखियाँ में ......’
 
सारा दिन सारी रात
 
गूँजती रहीं
 
मेरे कर्ण-कुहरों में
 
गीत की कड़ियाँ
 
हुआ अचानक भाग्योदय
 
कई वर्षों बाद
 
कल या कि परसों !
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