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22:12, 19 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

मगन मन पंख झड़ जाते यदि
और देखने वाली आँखें झप जाती हैं
शाहीन के अंदर पानी नहीं रहता
उस अमृत-जल को पी के भी जो
आँसुओं की धार है

दूसरे पहर की चमक में यदि
अगली रात की झलक है
और रात की कोख भी सूनी
जैसे मछुआरे का झावा

ये सारा मातम है यदि इसीलिए
कि मर जाएँ पर सच ही सच बताएँ
तो मर जाना ही बेहतर है उसे बताकर
कान में रुथ के

अँग्रेज़ी से अनुवाद : शमशेर बहादुर सिंह