भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें | अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें | ||
− | शोहरतें तो बाँट | + | शोहरतें तो बाँट ली रुसवाइयाँ भी बाँट लें |
− | + | ||
− | + | ||
− | |||
बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें | बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें | ||
आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें | आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें | ||
− | बँट गया है घर का | + | बँट गया है घर का आँगन, खेत सारे बँट गए |
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें | क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें | ||
08:04, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बाँट ली रुसवाइयाँ भी बाँट लें
बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आँगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें
कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटियाँ भी बाँट लें
अपने हिस्से की ज़मीं तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादियाँ भी बाँट लें
दर्द, आँसू, बेकरारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ में हम अपनी अपनी पारियाँ भी बाँट लें