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"जुस्तजू / संजय मिश्रा 'शौक'" के अवतरणों में अंतर

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सहर  तलक
 
सहर  तलक
 
कभी पहुंचू
 
कभी पहुंचू

09:11, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण


सहर तलक
कभी पहुंचू
ये जुस्तजू थी मेरी
मगर
उम्मीद के दामन में भर गए कांटे
मैं इक चिराग हूँ
जलना मेरा मुकद्दर है
मैं खुद तो जलता हूँ
लेकिन मेरे उजाले में
तमाम चेहरों को पहचानती है ये दुनिया
नकाब उठाते हैं शब् भर मेरे उजाले में
फना की सिम्त बढाता हूँ मैं कदम हर पल
है मेरे दिल में भी ख्वाहिश
अज़ल के दिन से ही
मुझे कभी तो बका-ए-दवाम हो हासिल
ये जो सहर की मुझे जुस्तजू है मुद्दत से
इसे भी दिल से कभी तो निकल दे या रब!!!