भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हरी-भरी बातें / अनिरुद्ध नीरव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:44, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

फिर शुरू हुईं
हरी-भरी बातें
तोड कर पहाड़ों के दायरे
       एक जलप्रपात-सी
       झरी बातें

अपमानों पर
धवल ध्वजाएँ
घावों पर खोंस कर गुलाब
जिसके पन्नों पर
टपका ज़हर
हमने खोली वही क़िताब
उलटे तिलचट्टों-सी
शेष रहीं
       चीटियाँ घसीटतीं
       मरी बातें

हम जो इतिहास में
पहाड़ थे
ऊँटों के काफ़िले हुए
पोले संबंधों ने
क्या दिए
सन्नाटों से भरे कुएँ

कितनी चतुराई से
बाँध रहे
       गमछे में
       आग से भरी बातें ।