भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धान की यह फ़सल / अनिरुद्ध नीरव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:57, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

लहलहाती
धान की यह फ़सल
आएगी खलिहान में
लेकर हिसाब
सूद कितना
और कितना असल

खेत पुरखों से हमारे
बीज
पिण्डों-सा दिया
पम्प से पानी पटा कर
समझ लो तर्पण किया

वे न पढ़ पाए बही
शायद पढ़े यह शकल
लोग कहते हैं
पटा मत
लिख शिकायत
होड़ कर
हम भला
कैसे मरेंगे
कर्ज़ कफ़नी ओढ़कर

लोग हँसते हैं
बड़ी हैं भैंस
या फिर अकल ।