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"सदा बरसने वाला मेघ / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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मैं सदा बरसने वाला मेघ बनूँ | मैं सदा बरसने वाला मेघ बनूँ | ||
− | + | तुम कभी न बुझने वाली प्यास बनो । | |
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संभव है बिना बुलाए तुम तक आऊँ | संभव है बिना बुलाए तुम तक आऊँ | ||
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हो सकता है कुछ कहे बिना फिर जाऊँ | हो सकता है कुछ कहे बिना फिर जाऊँ | ||
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यों तो मैं सबको बहला ही लेता हूँ | यों तो मैं सबको बहला ही लेता हूँ | ||
− | + | लेकिन अपना परिचय कम ही देता हूँ । | |
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मैं बनूँ तुम्हारे मन की सुन्दरता | मैं बनूँ तुम्हारे मन की सुन्दरता | ||
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तुम कभी न थकने वाली साँस बनो। | तुम कभी न थकने वाली साँस बनो। | ||
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तुम मुझे उठाओ अगर कहीं गिर जाऊँ | तुम मुझे उठाओ अगर कहीं गिर जाऊँ | ||
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कुछ कहो न जब मैं गीतों से घिर जाऊँ | कुछ कहो न जब मैं गीतों से घिर जाऊँ | ||
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तुम मुझे जगह दो नयनों में या मन में | तुम मुझे जगह दो नयनों में या मन में | ||
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पर जैसे भी हो पास रहो जीवन में । | पर जैसे भी हो पास रहो जीवन में । | ||
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मैं अमृत बाँटने वाला मेघ बनूँ | मैं अमृत बाँटने वाला मेघ बनूँ | ||
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तुम मुझे उठाने को आकाश बनो। | तुम मुझे उठाने को आकाश बनो। | ||
हो जहाँ स्वरों का अंत वहाँ मैं गाऊँ | हो जहाँ स्वरों का अंत वहाँ मैं गाऊँ | ||
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हो जहाँ प्यार ही प्यार वहाँ बस जाऊँ | हो जहाँ प्यार ही प्यार वहाँ बस जाऊँ | ||
− | + | मैं खिलूँ वहाँ पर जहाँ मरण मुरझाए | |
− | मैं खिलूँ वहाँ पर जहाँ मरण | + | मैं चलूँ वहाँ पर जहाँ जगत रुक जाए । |
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− | मैं चलूँ वहाँ पर जहाँ जगत रुक | + | |
मैं जग में जीने का सामान बनूँ | मैं जग में जीने का सामान बनूँ | ||
− | + | तुम जीने वालों का इतिहास बनो । | |
− | तुम जीने वालों का इतिहास | + | </poem> |
21:36, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
मैं सदा बरसने वाला मेघ बनूँ
तुम कभी न बुझने वाली प्यास बनो ।
संभव है बिना बुलाए तुम तक आऊँ
हो सकता है कुछ कहे बिना फिर जाऊँ
यों तो मैं सबको बहला ही लेता हूँ
लेकिन अपना परिचय कम ही देता हूँ ।
मैं बनूँ तुम्हारे मन की सुन्दरता
तुम कभी न थकने वाली साँस बनो।
तुम मुझे उठाओ अगर कहीं गिर जाऊँ
कुछ कहो न जब मैं गीतों से घिर जाऊँ
तुम मुझे जगह दो नयनों में या मन में
पर जैसे भी हो पास रहो जीवन में ।
मैं अमृत बाँटने वाला मेघ बनूँ
तुम मुझे उठाने को आकाश बनो।
हो जहाँ स्वरों का अंत वहाँ मैं गाऊँ
हो जहाँ प्यार ही प्यार वहाँ बस जाऊँ
मैं खिलूँ वहाँ पर जहाँ मरण मुरझाए
मैं चलूँ वहाँ पर जहाँ जगत रुक जाए ।
मैं जग में जीने का सामान बनूँ
तुम जीने वालों का इतिहास बनो ।