"अनपहचाना घाट / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा |संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा }} धूप ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा | |संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे | ||
+ | केश, सब लहरा रहे हैं | ||
+ | प्राण तेरे स्कंध पर !! | ||
− | + | यह नदी, यह घाट, यह चढ़ती दुपहरी | |
− | + | सब तुझे पहचानते हैं । | |
− | + | ||
− | + | सुबह से ही घाट तुझको जोहता है, | |
− | + | नदी तक को पूछती है, | |
+ | दोपहर, | ||
+ | उन पर झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारती है । | ||
− | + | यह पवन, यह धूप, यह वीरान पथ | |
− | + | सब तुझे पहचानते हैं । | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | और मैं कितनी शती से यहाँ तुझको जोहता हूँ । | |
− | + | आह ! | |
− | + | तूने नहीं पहचाना मुझे । | |
− | + | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं । | |
− | + | इसी नदिया तीर मेरे गान | |
− | तूने नहीं | + | डूबे हैं कहीं । |
− | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी | + | प्राण! तूने नहीं पहचाना मुझे । |
− | इसी नदिया तीर मेरे गान | + | मैं तुझे जोहा किया, |
− | डूबे हैं | + | रोया किया, |
− | प्राण! तूने नहीं | + | गाया किया, |
− | मैं तुझे जोहा किया, | + | किसी मुट्ठी में युगों से बन्द बादल-सा विकल हूँ हर घड़ी । |
− | रोया किया, | + | |
− | गाया किया, | + | |
− | किसी मुट्ठी में | + | |
प्राण मैं हूँ बवंडर, | प्राण मैं हूँ बवंडर, | ||
− | जो कहीं पथरा | + | जो कहीं पथरा गया । |
− | आह! मैं कितनी शती से, यहाँ | + | आह! मैं कितनी शती से, यहाँ |
− | तुझको जोहता हूँ, | + | तुझको जोहता हूँ, |
− | किन्तु तूने नहीं | + | किन्तु तूने नहीं पहचाना मुझे । |
− | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी | + | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं । |
− | किसी टहनी पर कहीं यदि डबडबाए फूल | + | किसी टहनी पर कहीं यदि डबडबाए फूल |
− | अधरों को छुला दे, | + | अधरों को छुला दे, |
− | बाँसुरी मेरी | + | बाँसुरी मेरी |
− | उठाकर, किन्हीं लहरों में सिरा | + | उठाकर, किन्हीं लहरों में सिरा दे । |
− | मुझे गा दे | + | मुझे गा दे....मुझे गा दे !! |
− | घाट हूँ मैं भी मगर | + | घाट हूँ मैं भी मगर |
− | मुझको नदी छूती नहीं है!! | + | मुझको नदी छूती नहीं है !! |
− | सुबह से ही प्राण! तुझको मैं जोहता हूँ | + | सुबह से ही प्राण ! तुझको मैं जोहता हूँ |
− | पूछता हूँ, | + | पूछता हूँ, |
− | झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारता | + | झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारता हूँ । |
− | आह! मेरी सब पुकारें, मेघ बनकर भटकती हैं! | + | आह! मेरी सब पुकारें, मेघ बनकर भटकती हैं ! |
− | किन्तु तूने | + | किन्तु तूने |
− | नहीं पहिचाना मुझे!! | + | नहीं पहिचाना मुझे !! |
− | धूप से लिपटे हुए | + | धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे |
− | केश सब लहरा रहै हैं | + | केश सब लहरा रहै हैं |
− | प्राण तेरे स्कंध पर! | + | प्राण तेरे स्कंध पर ! |
− | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं!! | + | इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं !! |
+ | </poem> |
18:28, 22 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे
केश, सब लहरा रहे हैं
प्राण तेरे स्कंध पर !!
यह नदी, यह घाट, यह चढ़ती दुपहरी
सब तुझे पहचानते हैं ।
सुबह से ही घाट तुझको जोहता है,
नदी तक को पूछती है,
दोपहर,
उन पर झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारती है ।
यह पवन, यह धूप, यह वीरान पथ
सब तुझे पहचानते हैं ।
और मैं कितनी शती से यहाँ तुझको जोहता हूँ ।
आह !
तूने नहीं पहचाना मुझे ।
इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं ।
इसी नदिया तीर मेरे गान
डूबे हैं कहीं ।
प्राण! तूने नहीं पहचाना मुझे ।
मैं तुझे जोहा किया,
रोया किया,
गाया किया,
किसी मुट्ठी में युगों से बन्द बादल-सा विकल हूँ हर घड़ी ।
प्राण मैं हूँ बवंडर,
जो कहीं पथरा गया ।
आह! मैं कितनी शती से, यहाँ
तुझको जोहता हूँ,
किन्तु तूने नहीं पहचाना मुझे ।
इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं ।
किसी टहनी पर कहीं यदि डबडबाए फूल
अधरों को छुला दे,
बाँसुरी मेरी
उठाकर, किन्हीं लहरों में सिरा दे ।
मुझे गा दे....मुझे गा दे !!
घाट हूँ मैं भी मगर
मुझको नदी छूती नहीं है !!
सुबह से ही प्राण ! तुझको मैं जोहता हूँ
पूछता हूँ,
झुंझकुरों से उठ तुझे गोहारता हूँ ।
आह! मेरी सब पुकारें, मेघ बनकर भटकती हैं !
किन्तु तूने
नहीं पहिचाना मुझे !!
धूप से लिपटे हुए धुएँ सरीखे
केश सब लहरा रहै हैं
प्राण तेरे स्कंध पर !
इन्हीं पत्तों में दबी है बाँसुरी मेरी कहीं !!