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"शाम / कविता गौड़" के अवतरणों में अंतर

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10:55, 23 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

शाम होते ही याद आने लगी उनकी
वे होते तो शाम रंगीन होती
वैसे तो रोज शाम होती है
पर कहाँ वो रंगीन होती है
मन जब ख़ुश होता है
तो शाम रंगीन होती है
दुख के पहाड़ टूटें तो
शाम गमगीन होती है
हो चुहलबाजियाँ तो
तो शाम नमकीन होती है
कुछ भी हो जाए चाहे
हर दोपहर के बाद शाम होती है