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"काका / मनीष मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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18:40, 24 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

आज वे नही हैं
जाने कहाँ भटक रहे होंगे।
शायद शब्दों के पड़ोस में
खबरों के तिलस्मी बियाबान में
छपते हुये ताजे अखबार की गर्मी के पास
जाने कहाँ ................
वे खबर-नवीस थे-
सूरज नहीं अखबार तय करते थे उनकी सुबह
ना जीतने की शर्त, ना हारने का मातम
न सपनों की डोर, ना जीवन की छोर।
आज उनकी अनुपस्थिति में
उनके खबरों की हजारों कतरनें
उनकी याद में फडफ़ड़ाती हैं
कई ताज़ा खबरें उनके घर के पास
दिपदिपाती हैं।