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"बेटी-१ / मनीष मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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बड़ी होती बेटी के साथ
छोटा पड़ता जाता है समय
छोटा होता जाता है घर।
उसके छोटे-छोटे हाथों से फिसलकर
बड़ी होती जाती है जिन्दगी।
बड़ी हो जाती हैं उसकी आँखें
छोटे-छोटे कौतुहल समेटे।