भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गोरे अधर मुस्काई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=आराधना / सूर…)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:36, 28 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

गोरे अधर मुस्काई
हमारी वसन्त विदाई ।
अंग-अंग बलखाई
हमारी वसन्त विदाई ।

परिमल के निर्झर जो बहे ये,
नयन खुले कहते ही रहे ये-
जग के निष्ठुर घात सहे ये,
बात न कुछ बन पाई,
कहाँ से कहाँ चली आई ।

भाल लगा ऊषा का टीका,
चमका सहज संदेसा पी का,
छूटा भय-पतिपावन जी का,
फूटी तरुण अरुणाई,
कि छूट गई और सगाई ।

</poem>