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"तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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21:34, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण
तुमने हँस के जो देखा जरा सा मुझे, हर तरफ़ चाँदनी की फ़सल हो गई ।
एक पल के लिए भी जो रूठ गए अपनी साँस भी मुझको गरल हो गई ।
तुम हमसे मिले, मिल कर बिछुड़े, हमें कविता की भाषा सरल हो गई ।
सुख के-दुख के यूँ शेर मिले, ज़िन्दगी एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गई ।