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"दीठ रो फरक / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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एक छोटै टाबर री | एक छोटै टाबर री | ||
आंख्यां मे हुवै | आंख्यां मे हुवै |
20:57, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
एक छोटै टाबर री
आंख्यां मे हुवै
एक जींवतो सपनो।
सपनैं में
एक लीलोछम रूंख
उण माथै चीं-चीं करती
रंग-बिरंगी चिड़कल्यां
मीठा गीत उगेरती कोयल
नाचतो-बोलतो मोर।
थारी चतर आंख्यां में ई
हाल हर्यो है एक सपनो
जिण में आप जोखो
लकड़ी रै मूंघा भाव मुजब
बिरछ रो वजन
अर आपरै हाथां नाचै
एक कुवाड़ो।
म्हनैं पड़तख लखावै
टाबर रै सपनै अर
आपरै कुवाडै़ में
जुगां जूनो बैर है
बिरछ री डाळयां ओटै
आप काटो
टाबर रै जींवता सपनां नै !