भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थे जाणो हो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण
थे म्हांनै
जक कोनी लेवण द्यो
थे जाणो हो
जे म्हैं
आराम सूं रैवण लागग्यो तो
थांरी नींद
हराम हो जावैला !