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काळजयी / कन्हैया लाल सेठिया

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सोनै रे
बूरै सी
चन्नण रै
चूरै सी
बेकळू री कूख
जाया
घणा मोला हीरा
करी जका
अमावस नै पून्यूं।

जागी जद
जौहर री रात
अरथीजगी
मौत
चौफेर
गूंजग्यो शील रो शंख
खिंडगी वासना री खंख !

कर दिया
खड़या
चिण‘र
बिना पाणी
रगत स्यूं
कीरत रा
कोट,

राखै
सरब भखसी काळ
ठाई
बां री
ख्यातां न परोट !