भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गूंज‘र पड़गूंज / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:33, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुण‘र
कलम पूंगी री
धुण
डोलावै
फण
काळ
पण कती‘क ताल
रै‘सी भूल्योड़ो
सभाव ?
चुकलतां ही
उमर री
आंगल्यां
मारसी डंक
पण मैं निसंक
करती रै‘सी
एक मेक
धरती‘र आभै नै
म्हारै गीतां री
गूंज‘र पड़गूंज !