भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दस की भरी तिजोरी / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
सौ में दस की भरी तिजोरी नब्बे खाली पेट
झुग्गीवाला देख रहा है साठ लाख का गेट ।
बहुत बुरा है आज देश में
लोकतंत्र का हाल
कुत्ते खींच रहे हैं देखो
कामधेनु की खाल
हत्या, रेप, डकैती, दंगा
हर धंधे का रेट ।
बिकती है नौकरी यहाँ पर
बिकता है सम्मान
आँख मूँद कर उसी घाट पर
भाग रहे यजमान
जाली वीज़ा पासपोर्ट है
जाली सर्टिफ़िकेट ।
लोग देश में खेल रहे हैं
कैसे कैसे खेल
एक हाथ में खुला लाइटर
एक हाथ में तेल
चाहें तो मिनटों में कर दें
सब कुछ मटियामेट ।
अंधी है सरकार-व्यवस्था
अंधा है कानून
कुर्सीवाला देश बेचता
रिक्शेवाला ख़ून
जिसकी उंगली है रिमोट पर
वो है सबसे ग्रेट ।