भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किताब में लिखे तुम / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("किताब में लिखे तुम / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
किताब में लिखे तुम,
बड़े अच्छे लगते हो कविवर!
किताब से बाहर,
पेट में पलस्टर लगाए,
अस्पताल में दाखिल
बीमार दिखते हो तुम,
कविवर!
अस्पताल से बाहर,
अस्तित्व को पाने के लिए,
सम्प्रेषण कर पाने के लिए,
जी-जान से कुलकते
बड़े जीवंत
दिखते हो तुम
कविवर!
रचनाकाल: १९-०९-१९९०