भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजीब आदमी हो जी! / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("अजीब आदमी हो जी! / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
अजीब आदमी हो जी!
फजीहत
फजीहत कहते हो
फजीहत फाड़कर
मैदान में
नहीं उतरते हो
मायूस बैठे
मातम मनाते हो।
कुछ तो करो जी,
खाल की ही
खजड़ी बजाओ,
उछलो
कूदो
नाचो
गाओ
माहौल तो
जिंदगी जीने का
बनाओ
हँसो
और
हँसाओ।
रचनाकाल: ०६-०४-१९९१