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छल का लोटा / नीलेश रघुवंशी
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मीरा रोई
प्रेम में सुध-बुध खोकर हरि की हुई
सुध-बुध खोए बिना मैं रोई फिर हरि की भला मैं कैसे हुई
मैंने उसे प्यार किया उसने मुझे प्यार किया
फिर छल क्यों मुस्कुराया
मैंने उसके छल को प्यार किया
उसके छली प्यार को गले लगाया
अदृश्य नाव पर बैठकर सात समुद्र पार किए
छल का लोटा छलका उसकी बूँद से समुद्र रोया
मंगलवार, 5 अप्रैल 2005, भोपाल