भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सात पंक्तियाँ / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 29 दिसम्बर 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्ति

एक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गई

उसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दिया

इस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती चौथी पंक्ति बनी

जो ख़ाली झूलती हुई पाँचवी पंक्ति से उलझी

जिसने छटपटाकर छठी पंक्ति को खोजा जो आधा ही लिखी गई थी

अंतत: सातवीं पंक्ति में गिर पड़ा यह सारा मलबा


(1992 में रचित)