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बाहर / मंगलेश डबराल

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मैंने दरवाज़े बन्द किए

और कविता लिख्नने बैठा

बाहर हवा चल रही थी

हल्की रोशनी थी

बारिश में एक साइकिल खड़ी थी

एक बच्चा घर लौट रहा था


मैंने कविता लिखी

जिसमें हवा नहीं थी रोशनी नहीं थी

साइकिल नहीं थी बच्चा नहीं था

दरवाज़े नहीं थे


(1990 में रचित)